Saturday 17 March 2012

विष की लोह भस्म

संगृहीत हैं रुग्नाव्यस्था
विषाक्तता कुचित गति से
आगे बढ़ती हैं
हम विविध कल्पो में
अमृत बाटते हैं
कल्प सेवन करने से पहले
किसने घोला विष ,
हे सूर्य पुत्र
चिरकालीन पथ्य स्थिर और ह्रास हैं
आओ ,
साँसों की सौन्दर्योपचारो में दूषित
अमृत को शुद्ध करे
मन की दुर्लब वातव्याधि
अभी भी जीर्ण हैं ,
ढक दो ढक्कन
इस आयुष्यवर्धक बर्तन का
कुत्सित अव्यवस्था ने अमृत में
लोह भस्म मिलाई हैं ..................रवि विद्रोही

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