Sunday 11 March 2012

सुखद सपने

अन्धो के इस शहर में
मेरा शीशे का व्यापार है
यहाँ धुंद की मृत्तिका अंधेरी है
फिर भी आँखों में सुनहरे भविष्य की
अकुलाहट का अधिकार है
झुलसी आशाओं की
सफ़ेद अंधेरी रातो में
एक नहीं ना जाने कितने
खुदगर्ज चाँद आ रहे है
मुझे मालूम है दर्पण के भाव ऊँचे है
और अन्धो की सोच ज़िंदा है
उनकी जाग्रत हंसी और सुरमे की सलाई
दर्पण में नजर नहीं आती
अंधी आँखों में आशाओं के सुखद सपने
फिर भी उन्हें भा रहे
और क्या कमाल है जनाब
अन्धो के इस शहर में
खोते जाइये और कहते रहिये
कि पा रहे हैं...

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