Saturday 24 December 2011

मार्यादित पथ

चिरस्थायित्व विचारों का आईना
उल्लसित   करता हैं
आदमी के जीवन को ,
अविलम्बता सूरज के पीछे छिपे
अंधेरो में कैद रहती हैं 
ये  आप कैसे साबित करोगे
जीवन का कर्षनीय पथ
उजालो की और दौड़ता हैं
जबकि आसमान के नीचे
उजाला भी हैं
और अन्धेरा भी ,
जब हमारी भूख प्रश्न करती हैं
अस्पृह का गतिकांक
नीचे गिरने लगता हैं
मर्यादाएँ अविलम्बित होती हैं
जाने वाला कल
आने वाले कल को
खुदाहाफिज़ कहता हैं
इन्ही अधमुंदे पालो में
सूरज चुपचाप हिलता हैं
रोशनी से अँधेरे की बात करता हैं
और हम एक दुसरे से
कानाफूंसी करते हुए
आज को जन्म देते हैं ...........................रवि विद्रोही

Saturday 17 December 2011

वास्तव में

वास्तव में तुम
तुम डरे हुए  लोग हो

पुराने फटेहाल छाते के नीचे
अपने आप को भ्रमित करते
एक सोच देते हुए कि
तुम बच जाओगे
वास्तव में
तुम मरे हुए लोग हो

क्षण में मासा
क्षण में तौला
झील की लहरों पर
चुपचाप चलते हो
दुनिया बदलने के नाम पर
अपने आप को छलते हो
बाद की बदनीयत को
कहना चाहते हो
पर खुद इसी  बदनीयत में
रहना चना हो
वास्तव में तुम
झूठ से लधे लोग हो

तुम्हारा  पल्लव विराट
और आसमानी कद
 ना डूब जाए
अंधेरो में
इसी बात पे दुनिया से झगड़ते हो
पर अपने ही कुछ लोगो को
नीच समझकर
रोज उनको घुटनों नीचे रगडते हो
दुनिया क्रान्ति लाती हैं
और तुम झूठी शान्ति
देखा जाए तो
शांन्ति के नाम पर
पाखण्ड में डूबे
वास्तव में
 तुम कायर लोग हो

महानतम  किताबे
रचते हो तुम
और उन्ही को पढ़कर
आँख के मरे हुए पानी से
नीच कहकर
इंसानों को गाली बकते हो तुम
तुम्हारी सभ्यता महान हैं
तुम्हारे आदर्श महान हैं
तुम्ही भगवान् बनते हो
तुम्ही शैतान बनते हो
मगर हकीकत तो ये ही है
वास्तव में तुम
दुनिया के जोकर लोग हो  ..................रवि विद्रोही

Saturday 3 December 2011

अविरल उजास

चारो और फ़ैली धरती को चूम लेना
धरती  पर उगी
दुसरो की फसल को हड़प लेना,
कोई बोले तो
बारूद की तरह भड़क जाना
फिर चारो दिशाओं में घूम घूम के
इंसानियत के गीत गाना
अपने आप को इश्वर का दूत बताना
कोई इस पर कुछ बोले तो
उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना
कुछ लोगो के
जीने का ये ही तरीका होता हैं .

शीत ज्वाल

अंकुरित समुन्दर शौर मचाता है
एक अंधा प्रहार करता रेत पर
और दूसरा
बादलों पर,
यही बहुत है
आज लहरे उठती है
लेकिन कल आएगी क्रान्ति
शौर मचाता शून्य समुन्दर
शांत नहीं होगा

अवस्थाये

किसने दी पीड़ा पंछी को
पिजड़े की ,
किसने काट डाले पर
वो उड़ ना सके ,
किसने ठुसे अपने शब्द
उसके मुह में ,
ताकी वो वन के गीत
ना गा सके ,
पंछी की अहर्निश
भीषणतर हैं पिंजड़े के भीतर
विस्फोटक हो जाता हैं मन
जब देखता हैं इंसानों का
दानवी रूप,
कफस की दुनिया
किसे अच्छी लगती हैं ,
विद्रोही पंछी पिंजड़े में
मर जाते हैं
और पारदर्शी लाचार
पिंजरे को ही
अपना संसार मान लेते हैं,
नए धरातल पर
पिंजड़ो की शक्ल बदल रही हैं
तुम्हे पता ही नहीं
शोषण की लाठी ठोकते
कुछ बेरहम मानव
पिंजड़ो का कारखाना लगा रहे हैं

क्षुब्ध सरिता

ओ ह्रदय को कटती
कटु-तिक्त सरिता
मुक्त हैं तू अंतिम अवस्थाओं में
और व्यर्थ की प्रतीक्षाओं में
व्याकुल हूँ मैं
आओ
सागर के गूढ़, गूढ़तर पानी को
मथ दे
हे प्राज्य
शान्ति के लिए सुख को
सूख जाने दो .

अनुज्ञा प्रश्न

रोक दो स्पृहा
रोक दो कच्चे गारे में सनी
अविछिन्न सी बाते हैं ये ,
ये तुम्हारी मर्म कथा
रस का निर्झर निचोड़ नहीं
प्रतीति में झांकते काले बादल
सभी और हैं,
कफस को मजबूत बनाते लोग
आकुल हृदय को ही
निशाना बनाते हैं ,
सौंदर्य रहित परिभाषा
रचने वाले
सदियों से अवसाद मुखर के
स्वर को अग्नि देते हुए
परिवृत के
बीचोबीच डेरा डाले पड़े हैं
जरुरत हैं उनको
परिपथ से बाहर करने की

दिन का सवेरा

आशाओं के सीने में
फिर जगता हैं नया दिन
और मरता हैं अन्धेरा
उठो ऐ प्राच्या
जागो ऐ विराटक
दिन का सवेरा
बहुत कुछ लाता हैं.