Tuesday 3 April 2012

मन का विश्लेषण

स्त्री के कथित मन का विश्लेषण ..शायद इसे में गर्व हैं और इसी में साहस भी ...कुछ लोग स्वर्ग को तो तलाश लेते हैं मगर उसके द्वार की चाबी खो बैठते हैं ..मैंने स्त्री के मन में झांका और स्वर्ग की चाबी उसकी आँखों में कैद पाई,, मैंने कहा तुम मेरी आत्मा का दुसरा रूप हो क्या द्वार नहीं खोलोगी ..स्त्री ने झुक कर मेरी आँखों में देखा और कहा ..

कविता शब्द गढ़ती है
खुरदरे भी नाजुक भी
गीले गीले भाव से सने शब्द,
थर थर कांपते शब्द,
पीपल के पात जैसे
झन झन करती कठोर हँसी
ग्रास लिपटी जो
शिराओं से होती हुई
ह्रदय को थरथराती है ,
क्यों गढ़ते हो शब्द
मुझे गूंगी ही रहने दो,
नहीं दे पाउंगी उत्तर
सवाल पूछते शब्दों का
तुम्हारे साथ गहरे उतर कर
उस पोखर में
जहां रात आती है पूछने
चाँद क्यू नहीं निकला ,
औरत को पाने के सौ बहाने करते शब्द
गीले हो जाते है
तुष्टीकरण की आगे,
गूंगी हो जाती है भाषा
फिसलते है शब्द
सीने ने उठते है राग,
डरती हूँ दृढ़ता से
भावी स्वप्न स्नेह-प्रतीती शब्दों से
कही उत्पन ना कर दे अबोध बैराग्य ,
लीप दो मिट्टी हर चीज पर
सुबह सुबह
काले आकाश में खडीया से
लिखाई की है मैंने
शब्द आयेगे
बताने उत्तर .......

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