देवता सदा ही आरोहित रहे हैं
उनके दौड़ाने की चाह अतिशयता
को लांघती हैं
आगे निकलने की प्रक्रिया
व्याख्यान नहीं सुनती
सोचो कुछ दिन
धरो कुछ धीरज
अतिसुग्राहिता को पूरी तरह
समझ सकने वाले लोग
करोडो के शहर में भी
एक हाथ की अंगुली पर
गिने जा सकते हैं
पासा फेंकने वाले लोग
उपदेशको से दूर ही रहते हैं
सिंहासन आज भी दुर्बल हैं
अहिल्या आज भी रोती हैं
शचि कैसे सहन करती थी
दुर्बल देवताओं का छद्मरूप
आज भी
देवताओं से अवतरित
और देवताओं की पत्नी की योनी से
जन्म का झांसा
उपदेशको के प्रवचनों में
प्रबल वेग भर देता हैं ...................रवि विद्रोही
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