Sunday 15 July 2012

 उदय हुआ सवेरा

बंगाल की खाड़ी के पानी पर
जब सूरज चमकता हैं
कोलाहल का बड़ा सा रेला
पश्चिम की और भागता हैं
शहरो में हलचल होती हैं
अरब सागर त्योरियाँ चढ़ाए बैठा है
सुबह उसे कोई पूछता ही नहीं
छोटी चिड़ियाँ किरणों को देखकर
इधर उधर फुदकती हैं
पुजारी गुस्से से भरा
मूर्तियों को आँख फाड़ फाड़ कर देखता
बडबड़ाता हैं पप्पू की माँ
एक नहीं अनेक रेशमी साड़ी तेरी देह पर
चमकती
यदि लोग और भी धार्मिक बनते
कमबख्त अभी तक एक भी नहीं आया
धूप में बैठा मरियल खाजल कुत्ता
पुजारी के कथन को ध्यान से सुन रहा हैं
दुसरे कुत्ते एक दुसरे की टांग सूँघकर
रात में हुई खुशखबरी को सूना रहे हैं
जग रतनी माँ को कोसती हुई
तमछन्न मन से पानी को निकली
माँ का जल्दी सुबह उठाना उसे
कभी भी अच्छा नहीं लगा
जवानी में सपने भौर में अच्छे लगते हैं
बाबू पहलवान
अभी भी पसीने तर बतर हैं
दंड पेलना अभी भी जारी हैं
सुबह का जागना मुझे भी कभी
अच्छा नहीं लगा
हवा रेगती हुई मुझे जगाती हैं
हे धुप तुम्हारी ताकत को
सोना नसीब ही नहीं
जब तुम रेंगती हो
नींद कोसो दूर भाग जाती हैं
ढलानों पर अभी भी
मजदूर कारखाने से निकल रहे हैं
धूप की कठोर चित्त दाह के साथ
सोने के लिए .......................................रवि विद्रोही

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