Sunday 15 July 2012

 हारा हुआ देवता

हे धूर्त चपटी
तुम्हारा चन्दन का टीका
मेरी कुदाल से ज्यादा
उपयोगी नहीं ,
लोक परलोक की बेहूदा बाते
तुम्हारे चालाक दिमांग का ही हिस्सा हैं
जो तुम्हारा पेट पालती हैं
मुझे पता है
तुम्हारे जनेऊ में
मरी हुई जुओं की
गंध आती है
जिनमे जीवन का नहीं
मौत का भय दिखता है ,
तुम उस जन्म के लिए नहीं
अपितु इस जन्म के सुख और भोग में विलुप्त
बिना पसीना बहाए खाने वाले परजीवी हो
मेरे देह का पसीना
और मेहनत से बने पसीने की सुगंघ
तुम्हारे सड़े हुए जनेऊ
और उब्काऊ श्लोको से
लाख गुना बहतर है ,
आओ , मेरे पसीने से
अपने बदन को रगडो
मेरे साथ देवताओं के नहीं
इंसानों के गीत गाओ
खुशबू अपने आप आयेगी
महसूस करो
कि बू की कोई भाषा नहीं होती
और गंध का कोई वजूद नहीं होता ...........रवि विद्रोही

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