आबाधा सत्य मुस्काता हैं
कोष्ठबद्धता बिजलियों को कैद
करती हैं
उल्लम्ब छद्मरूप परिहास करता हैं
जब शिराएँ जन त्राता बनती हैं
आनंदित हैं असंयम
घनीभूत होती होठो की हंसी
प्रतारक में तब्दील हो रही हैं
जन समूह दिग्भ्रमित हैं
मैं उनमे राज्य स्वामित्व की इच्छा
जगाता हूँ
मेरी मनोदृष्टी शाब्दिक होकर
लक्ष वेद्धता को ललचाती नजरो से
देखती हैं
जन जन के चिच्छाक्ति जन पट्ठे
अभी भी
मुझे सुनहरी रोशनी ही समझते हैं
जो उनके भाग्य को बदलेगी
आसमान कितना भी साफ़ हो
धरती की प्रतिछाया से दूर ही रहता हैं
प्रकाश छिद्रों से आती रोशनी
अनेक रंगों में सुज्जजित हैं
मगर परछाई का रंग
एक सा ही रहता हैं
मेरे मन की कुदृष्टी मेरे अलावा
किसी को दिखाई नहीं देती
प्रतिसैन्य परतो का विशाल घेरा
उसकी रक्षा करता हैं .......................रवि विद्रोही
कोष्ठबद्धता बिजलियों को कैद
करती हैं
उल्लम्ब छद्मरूप परिहास करता हैं
जब शिराएँ जन त्राता बनती हैं
आनंदित हैं असंयम
घनीभूत होती होठो की हंसी
प्रतारक में तब्दील हो रही हैं
जन समूह दिग्भ्रमित हैं
मैं उनमे राज्य स्वामित्व की इच्छा
जगाता हूँ
मेरी मनोदृष्टी शाब्दिक होकर
लक्ष वेद्धता को ललचाती नजरो से
देखती हैं
जन जन के चिच्छाक्ति जन पट्ठे
अभी भी
मुझे सुनहरी रोशनी ही समझते हैं
जो उनके भाग्य को बदलेगी
आसमान कितना भी साफ़ हो
धरती की प्रतिछाया से दूर ही रहता हैं
प्रकाश छिद्रों से आती रोशनी
अनेक रंगों में सुज्जजित हैं
मगर परछाई का रंग
एक सा ही रहता हैं
मेरे मन की कुदृष्टी मेरे अलावा
किसी को दिखाई नहीं देती
प्रतिसैन्य परतो का विशाल घेरा
उसकी रक्षा करता हैं .......................रवि विद्रोही
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