किसने दी पीड़ा पंछी को
पिजड़े की ,
किसने काट डाले पर
वो उड़ ना सके ,
किसने ठुसे अपने शब्द
उसके मुह में ,
ताकी वो वन के गीत
ना गा सके ,
पंछी की अहर्निश
भीषणतर हैं पिंजड़े के भीतर
विस्फोटक हो जाता हैं मन
जब देखता हैं इंसानों का
दानवी रूप,
कफस की दुनिया
किसे अच्छी लगती हैं ,
विद्रोही पंछी पिंजड़े में
मर जाते हैं
और पारदर्शी लाचार
पिंजरे को ही
अपना संसार मान लेते हैं,
नए धरातल पर
पिंजड़ो की शक्ल बदल रही हैं
तुम्हे पता ही नहीं
शोषण की लाठी ठोकते
कुछ बेरहम मानव
पिंजड़ो का कारखाना लगा रहे हैं
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