अनुप्रयोज्य
Saturday 3 December 2011
शीत ज्वाल
अंकुरित समुन्दर शौर मचाता है
एक अंधा प्रहार करता रेत पर
और दूसरा
बादलों पर,
यही बहुत है
आज लहरे उठती है
लेकिन कल आएगी क्रान्ति
शौर मचाता शून्य समुन्दर
शांत नहीं होगा
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