Tuesday 15 January 2013

मेरा बचपन
पौधघर था
जहां मुझे रोंपा गया
इंसानों की शानदार खेती के लिए

जवानी सीखने की
कार्यशाला थी
जहां मैंने बहुत से
हुनर सीखे
दुसरो को गिराने के लिए

शादी एक ऐसा तौफा थी
जो विज्ञापन की भांती
बाहर से ललचाता था
अन्दर से कोरा खाली था

और मेरा बुढापा
बरगद के पेड़ की तरह हैं
जो अपने नीचे किसी
दुसरे पेड़ को
पनपने नहीं देता........रवि विद्रोही

1 comment:

  1. जीवन के कालखण्‍डों के प्रति भी विद्रोह ..

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