tag:blogger.com,1999:blog-38317339454513449742024-03-12T15:49:03.699-07:00अनुप्रयोज्यअनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-57257933279240202362013-01-15T21:10:00.003-08:002013-01-15T21:10:45.289-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">मेरा बचपन<br />पौधघर था<br />जहां मुझे रोंपा गया<br />इंसानों की शानदार खेती के लिए<br /><br />जवानी सीखने की<br />कार्यशाला थी<br />जहां मैंने बहुत से<br />हुनर सीखे<br />दुसरो को गिराने के लिए<br /><br />शादी एक ऐसा तौफा थी<br />जो विज्ञापन की भांती<br />बाहर से ललचाता था<br />अन्दर से कोरा खाली था<br /><br />और मेरा बुढापा<br />बरगद के पेड़ की तरह हैं <br />जो अपने नीचे किसी<br />दुसरे पेड़ को<br />पनपने नहीं देता........रवि विद्रोही </span></div>
अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-31250468253125235172012-10-23T23:13:00.002-07:002012-10-23T23:13:57.807-07:00<b>गर्व से कहो मैं हिन्दू हूँ, <br />मैं अपने ही भाइयो को <br />नीच और अछूत समझता हूँ<br />जाति के नाम पर उनके साथ <br />घनघौर भेदभाव करता हूँ,<br />उन्हें हर बात पर प्रताड़ित करता हूँ<br />उन्हें जानवरों से भी गया गुजरा<br />समझता हूँ ,<br />उनके द्वारा उगाई फसल <br />और उनके बेर तो खाता हूँ <br />मगर उनसे बैर भी रखता हूँ <br />उनके हर हिस्से को निगल जाता हूँ,<br />यहाँ तक की अगर वे सर उठाये तो <br />सरेआम ज़िंदा जलाकर <br />तमाशा बना सकता हूँ,<br />उनकी स्त्रीयों की नाक <br />काट सकता हूँ ,<br />आओ, हम अपने पूर्वजों की <br /> विरासत को संभाले,<br />मुझे इस संस्कृति और सभ्यता को <br />आगे ले जाना हैं<br />मुझे गर्व हैं मैं हिन्दू हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,रवि विद्रोही </b>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-59878179817208222052012-07-15T13:38:00.001-07:002012-07-15T14:07:39.026-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-7BQzNFDLOYU/UAMqJ_DtOzI/AAAAAAAAACQ/xsXA-41We2s/s1600/284930_240599002636604_345868_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://3.bp.blogspot.com/-7BQzNFDLOYU/UAMqJ_DtOzI/AAAAAAAAACQ/xsXA-41We2s/s320/284930_240599002636604_345868_n.jpg" width="320" /></a></div>
अच्छे लोगो की दोस्ती एक ऐसी ज्वाला है, जो आत्मा में अचानक सुलग उठती है और हृदय को तपाकर पवित्र बना देती है, दोस्तों के दिलो में उतर आती है और उसके आस्तित्व में चलकर लगाने लगती है ... .. दोस्ती वाकई एक सच्ची और सीधे साधे पहुचे हुए फ़कीर के सामान हैं ...अपने दोस्त मायामृग को देखकर मैंने कभी ये लाइन लिखी थी थी ..<br />
<br />
मार्गस्थ महार्घ मन बंधन रुचिकर हैं<br />
यादो के आसपास घूमते हैं कथानक बनकर<br />
मृण्मय प्रतिनाद ह्रदय का आयतन बढाती है<br />
गम्य पल बढ़ने दो धीरे धीरे ....................... रवि विद्रोही....<br />
<br />
मार्गस्थ= रास्ते में मिलने वाले <br />
महार्घ= महंगे<br />
मृण्मय= दुनिया दारी <br />
प्रतिनाद= पहाडो में खुद की वापिस लोटकर सुनाई वाली आवाज <br />
मृण्मय प्रतिनाद=संसार में अच्छी या बुरी हमारी आवाज समय समय पर हमको वापिस सुनाई पड़ती हैं ... ह्रदय का आयतन यानी जिसको सुनकर गम या खुशी के अहसास में डूबते हैं ..ये अच्छी बुरी प्रतिध्वनी जब हम सुनते हैं हमारे दिलो की धडकण को बढ़ा देती हैं <br />
गम्य पल= सिखने वाला समय <br />
<br />
अब हर लाइन का प्रथम अक्षर मिलाइए ..( मार्गस्थ का मा ..यादो का या ...मृण्मय का मृ ...गम्य का ग ...).हां हां हां बन गया ना मायावी हिरण यानी यानी मायामृग <br />
....................... रवि विद्रोही....</div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-19500264425142183212012-07-15T10:10:00.001-07:002012-07-15T10:10:23.494-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> खून सने शब्द </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">नाखून जब शब्द लिखते हैं<br /> रक्त शिराएँ में उबाल आता हैं<br /> रूह बंद हैं ताबूतो में,<br /> इंसान<br /> सभ्यताओ से सवाल करता हैं <br /> इंसानों ने सभ्यताओ की <br /> चादर ओढ़ रखी हैं <br /> रात का अन्धेरा <br /> सभ्यताओं की गहराई नापता हैं <br /> और सुबह का उजाला <br /> इंसानों का प्रवाह देखता हैं ........................RV</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-77157691806211571912012-07-15T10:08:00.000-07:002012-07-15T10:08:23.175-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;">स्वपन </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">स्वपन तब भी थे <br /> जब रात काली थी <br /> स्वपन आज भी हैं <br /> जब दिन का उजाला हैं <br /> आव्वाक रह जाता हूँ <br /> जब लक्षमण रेखा <br /> मटमैले रंग से <br /> लाल रंग में परवर्तित होती हैं <br /> इंगित सपने काषाय रंग बनकर <br /> गद्दारी करते हैं ......................रवि विद्रोही</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-72716843990252919792012-07-15T10:06:00.002-07:002012-07-15T10:06:46.624-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> हारा हुआ देवता </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">हे धूर्त चपटी<br /> तुम्हारा चन्दन का टीका<br /> मेरी कुदाल से ज्यादा<br /> उपयोगी नहीं ,<br /> लोक परलोक की बेहूदा बाते <br /> तुम्हारे चालाक दिमांग का ही हिस्सा हैं <br /><span class="text_exposed_show"> जो तुम्हारा पेट पालती हैं <br /> मुझे पता है<br /> तुम्हारे जनेऊ में<br /> मरी हुई जुओं की<br /> गंध आती है<br /> जिनमे जीवन का नहीं<br /> मौत का भय दिखता है ,<br /> तुम उस जन्म के लिए नहीं <br /> अपितु इस जन्म के सुख और भोग में विलुप्त <br /> बिना पसीना बहाए खाने वाले परजीवी हो <br /> मेरे देह का पसीना<br /> और मेहनत से बने पसीने की सुगंघ <br /> तुम्हारे सड़े हुए जनेऊ <br /> और उब्काऊ श्लोको से<br /> लाख गुना बहतर है ,<br /> आओ , मेरे पसीने से<br /> अपने बदन को रगडो<br /> मेरे साथ देवताओं के नहीं <br /> इंसानों के गीत गाओ <br /> खुशबू अपने आप आयेगी <br /> महसूस करो<br /> कि बू की कोई भाषा नहीं होती<br /> और गंध का कोई वजूद नहीं होता ...........रवि विद्रोही</span></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-47668336773621861862012-07-15T10:05:00.001-07:002013-01-15T21:11:23.917-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> उदय हुआ सवेरा </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">बंगाल की खाड़ी के पानी पर <br /> जब सूरज चमकता हैं <br /> कोलाहल का बड़ा सा रेला <br /> पश्चिम की और भागता हैं <br /> शहरो में हलचल होती हैं <br /> अरब सागर त्योरियाँ चढ़ाए बैठा है <br /><span class="text_exposed_show"> सुबह उसे कोई पूछता ही नहीं <br /> छोटी चिड़ियाँ किरणों को देखकर <br /> इधर उधर फुदकती हैं <br /> पुजारी गुस्से से भरा <br /> मूर्तियों को आँख फाड़ फाड़ कर देखता <br /> बडबड़ाता हैं पप्पू की माँ <br /> एक नहीं अनेक रेशमी साड़ी तेरी देह पर <br /> चमकती <br /> यदि लोग और भी धार्मिक बनते <br /> कमबख्त अभी तक एक भी नहीं आया <br /> धूप में बैठा मरियल खाजल कुत्ता <br /> पुजारी के कथन को ध्यान से सुन रहा हैं <br /> दुसरे कुत्ते एक दुसरे की टांग सूँघकर <br /> रात में हुई खुशखबरी को सूना रहे हैं <br /> जग रतनी माँ को कोसती हुई <br /> तमछन्न मन से पानी को निकली <br /> माँ का जल्दी सुबह उठाना उसे<br /> कभी भी अच्छा नहीं लगा <br /> जवानी में सपने भौर में अच्छे लगते हैं <br /> बाबू पहलवान <br /> अभी भी पसीने तर बतर हैं <br /> दंड पेलना अभी भी जारी हैं <br /> सुबह का जागना मुझे भी कभी <br /> अच्छा नहीं लगा <br /> हवा रेगती हुई मुझे जगाती हैं <br /> हे धुप तुम्हारी ताकत को <br /> सोना नसीब ही नहीं <br /> जब तुम रेंगती हो <br /> नींद कोसो दूर भाग जाती हैं <br /> ढलानों पर अभी भी <br /> मजदूर कारखाने से निकल रहे हैं <br /> धूप की कठोर चित्त दाह के साथ <br /> सोने के लिए .......................................रवि विद्रोही</span></span></div>
अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-82932538598110793712012-07-15T10:03:00.002-07:002012-07-15T10:03:20.813-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;">उमंग </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">उमंग परिभाषित हैं <br /><span class="text_exposed_show"> और मन अनंत <br /> पत्थर तू जोर से हिल <br /> जीवन अभी भी <br /> टस से मस नहीं हैं<br /> उमंग का आना <br /> कौन परिभाषित करेंगा<br /> ऊपर से नीचे आना उमंग हैं <br /> या नीचे से ऊपर जाना<br /> पर उमंग होती हैं लुभावावानी <br /> आओ उसे पकडे ..<br /> कस कर ................रवि विद्रोही</span></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-89000977246579545902012-07-13T20:20:00.000-07:002012-07-13T20:20:10.393-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-54Rr7wz9FKg/UADlV3ZGuDI/AAAAAAAAACE/K9R15zT76qQ/s1600/DSC00206.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-54Rr7wz9FKg/UADlV3ZGuDI/AAAAAAAAACE/K9R15zT76qQ/s320/DSC00206.JPG" width="240" /></a></div>
आबाधा सत्य मुस्काता हैं <br /> कोष्ठबद्धता बिजलियों को कैद <br /> करती हैं <br /> उल्लम्ब छद्मरूप परिहास करता हैं <br /> जब शिराएँ जन त्राता बनती हैं <br /> आनंदित हैं असंयम<br /><span class="text_exposed_show"> घनीभूत होती होठो की हंसी <br /> प्रतारक में तब्दील हो रही हैं <br /> जन समूह दिग्भ्रमित हैं <br /> मैं उनमे राज्य स्वामित्व की इच्छा<br /> जगाता हूँ<br /> मेरी मनोदृष्टी शाब्दिक होकर<br /> लक्ष वेद्धता को ललचाती नजरो से<br /> देखती हैं <br /> जन जन के चिच्छाक्ति जन पट्ठे <br /> अभी भी<br /> मुझे सुनहरी रोशनी ही समझते हैं<br /> जो उनके भाग्य को बदलेगी <br /> आसमान कितना भी साफ़ हो<br /> धरती की प्रतिछाया से दूर ही रहता हैं <br /> प्रकाश छिद्रों से आती रोशनी <br /> अनेक रंगों में सुज्जजित हैं <br /> मगर परछाई का रंग <br /> एक सा ही रहता हैं<br /> मेरे मन की कुदृष्टी मेरे अलावा <br /> किसी को दिखाई नहीं देती <br /> प्रतिसैन्य परतो का विशाल घेरा <br /> उसकी रक्षा करता हैं .......................रवि विद्रोही</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-8725333569241530022012-07-13T20:16:00.000-07:002012-07-13T20:16:03.742-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-rlxJbks49pY/UADkM47Re-I/AAAAAAAAAB8/hH5itD90Fdo/s1600/OP909.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="http://1.bp.blogspot.com/-rlxJbks49pY/UADkM47Re-I/AAAAAAAAAB8/hH5itD90Fdo/s320/OP909.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
देवता सदा ही आरोहित रहे हैं <br /> उनके दौड़ाने की चाह अतिशयता <br /> को लांघती हैं <br /> आगे निकलने की प्रक्रिया <br /> व्याख्यान नहीं सुनती <br /> सोचो कुछ दिन <br /><span class="text_exposed_show"> धरो कुछ धीरज<br /> अतिसुग्राहिता को पूरी तरह <br /> समझ सकने वाले लोग <br /> करोडो के शहर में भी <br /> एक हाथ की अंगुली पर <br /> गिने जा सकते हैं <br /> पासा फेंकने वाले लोग<br /> उपदेशको से दूर ही रहते हैं <br /> सिंहासन आज भी दुर्बल हैं <br /> अहिल्या आज भी रोती हैं <br /> शचि कैसे सहन करती थी <br /> दुर्बल देवताओं का छद्मरूप <br /> आज भी <br /> देवताओं से अवतरित <br /> और देवताओं की पत्नी की योनी से <br /> जन्म का झांसा <br /> उपदेशको के प्रवचनों में <br /> प्रबल वेग भर देता हैं ...................रवि विद्रोही</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-79798155372101714882012-06-11T12:16:00.000-07:002012-06-11T12:16:16.823-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कविता कितनी भी किलिष्ठ और साहित्यिक भाषा में कितनी ही प्रबल लिखी हो अगर
वह भाषा पुराण, किंवदंती और मिथक एकेडेमिक्स में लिखी गई तो वह बुराई का
प्रतीक हैं और उसका मर जाना ही बहतर हैं ..उस कविता का जीना भी क्या जो
नैतिकता के पाश में ना बंधी हो..<br /> प्रेम के नाम पर व्यभिचार और ऐय्याशी से भरा काव्यशास्त्र कूड़े में फेंकने लायक हैं<br />
<br />
<span class="text_exposed_show">समय के स्पन्दन और मुद्दों के कम्पन में<br /> देखो कितना अंतर है<br /> दोनों की शुभ्र कुटील मुस्कानों में<br /> और आत्मीय स्नेह में<br /> ना प्रश्न हैं ना उत्तर <br /> बस इंसान निरउत्तर है.</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-82580725357371632912012-06-11T12:14:00.000-07:002012-06-11T12:14:00.159-07:00अशआर ii<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कमतर भी थी गंवारा ,बाकी की गनीमत हैं <br /> दो घूँट बच रहे हैं , साकी भी मस्त अब तो ...<br />
<br />
इस तहे अफ्लाफ जमीं पर, आप कीजिये शुमार <br /> जो खुद को खुदा कहते हैं, और खुद हैं खाकसार ...... <br /> <br /> तहे अफ्लाफ= आसमान के नीचे<br />
रंगी -अबाएं इश्क में, ये सितम भी इंतेखाब हैं,<br /> जो कनीज लूट गई जहाँ, तेरा खुल्द लाजवाब हैं ..... <br /> <br /> रंगी -अबाएं इश्क= रंगीन प्यार में लिपटा हुआ<br /> इंतेखाब= चुना हुआ<br /> कनीज= जालिमो द्वारा ऐय्याशी के लिए रखी गई बेसहारा लडकियां<br /> खुल्द = स्वर्ग<br />
<br />
बर खिलाफ शिकवे <br /> हटाकर तो देखिये <br /> हद-ऐ-नजर पढेगी <br /> बेनियाज दिल हमारा .............रवि विद्रोही<br />
</div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-67734241891465513702012-06-11T12:07:00.003-07:002012-06-11T12:11:10.974-07:00अशआर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>रश्क-ए-मुहब्बत गले पडी , एक .दर्द-ए-निहाँ सा लाई हैं <br /> महफूज नहीं अब अश्क मेरा,यहाँ कब से जवानी छाई हैं </b><br />
<br />
<b> महबूब बर्हम हमसे, हम किससे करे शिकवा <br /> मुजतिर हैं तबां नाजुक, दिलदार नहीं मिलते </b><br />
<br />
<b> सलाम ना सही ,मुस्कराहट दो दीजिये <br /> अपने आने की हमें , आहट तो दीजिये .</b><br />
<br />
<b> आज हवा ठहरी है, और घटा छाई है..<br /> ना तो ये धूप हैं ना धूप की परछाई हैं.......... </b><br />
<br />
<b> आशना ही नहीं हम अभी, मंजिल के किनारों तक <br /> महवे हैरत में जी अपना,दिलरुबाई हैं सितारों तक .. <br /><br /> आशना= परिचित</b> <b><br /> महवे हैरत = आच्चार्य में डूबा हुआ <br /> दिलरुबाई= हृदय की मनोहर चाहत</b><br />
<br />
<b> बर्क-ऐ-तपा के आगे ,कोई कैसे बच सकेंगा <br /> अब्रे जहाँ ही क़ज हो, परस्तिश से ना गुजारा ..............रवि विद्रोही <br /><br /> बर्के तपा= बिजली की चमक </b> <b><br /> अब्रे जहाँ = बादलो का संसार <br /> क़ज= कुटील <br /> परस्तिश = पूजा पाठ/ स्तुति</b></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-21507131225906962862012-06-11T12:02:00.003-07:002012-06-11T12:02:24.985-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b>अन्धो ने हमेशा ही<br /> राज किया हैं और रार मचाई <br /> कुर्बान हुए वीर जिनके <br /> अंगूठे काट लिए गए<br /> अब कोई पूंछ वाला <br /> बचाने नहीं आयेगा <br /> जिसने आग लगाईं थी नगरी में<br /> अब तो अन्धो का एकमात्र सहारा हैं<br /> बेटो के कंधो पर सवार होकर<br /> तीर्थयात्रा पर निकला जाए<br /><span class="text_exposed_show"> उस अमृत को चाटे <br /> जो छिना गया था मक्कारी <br /> और बेईमानी से <br /> एकलव्य के बच्चे <br /> जहर को भी अमृत बना रहे हैं <br /> कटे हुए अंगूठे से नई दुनिया <br /> बना रहे हैं<br /> दर्द की अनुभूति <br /> बता रही हैं कुछ बाहर <br /> आने वाला हैं<br /> कुदरत ने दर्द काहे बनाया ... . ..........रवि विद्रोही</span></b></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-15221365723505948002012-04-03T16:05:00.002-07:002012-04-03T16:05:39.387-07:00चिर रहस्य ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
स्त्री के ह्रदय पर लिखे शब्द शायद ही हम पढ़ पाए ...आप स्त्री का सानिध्य इसलिए पाते हो कि आप मस्त हो जाओ और स्त्री इसलिए चाहती हैं कि वह आपकी मस्ती को कम कर दे ..जब वह मांगती हैं किसी के लिए तो जीवन तत्त्व मांग लेती हैं समस्त जीवन को प्रकट कर देती हैं ..मगर इसके बावजूद भी वह एकेलापन महसूस करे तब हम उसके अंतकरण की व्याख्या नहीं कर सकते ..बार मांगती हैं रहती वो रहस्य जहा वो सचमुच विचरण कर सके...पर क्या हम उसे ये दे पाए...<br />
<br />
<span style="font-size: large;">क्या मांगू मै उनसे<br />
जिनके लिए माँगा था शहर<br />
एक नाजुक वक्त में<br />
वो बादलो को मेरे सीने पर<br />
लाकर छोड़ देता है ,<br />
धुप के नीचे<br />
दिल के करीब<br />
उस मुलाक़ात में<br />
ना प्रश्न हैं ना उत्तर<br />
ना निवेदन की तलाश,<br />
मौन आँगन में<br />
चुप-चुप छन कर आती धुप<br />
नाज़ुक नहीं नटखट सी है<br />
जख्म आज उतना बड़ा नहीं<br />
जितना बड़ा प्रतीक्षारत होना,<br />
करवटो में अक्सर<br />
हल्की-हल्की वो चमक<br />
सुन्न परिस्थितियाँ में<br />
बेजुबान साज सी लगती है,<br />
अनपढ़ बिलकुल ही अनगढ़,<br />
आओ ,चले फिर से मदरसों में<br />
कोई पाठ पढ़े,<br />
स्मिति में छिपे<br />
उन रहस्यों को बांचे<br />
जहा चिर रहस्य रहता है<br />
इतिहासों के बीच,<br />
आओ ,<br />
करीब और करीब आके <br />
उस शहर को फिर से मांगे<br />
जो माँगा था किसी के लिए </span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-80437284732195498252012-04-03T16:04:00.000-07:002012-04-03T16:04:20.832-07:00मन का विश्लेषण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">स्त्री के कथित मन का विश्लेषण ..शायद इसे में गर्व हैं और इसी में साहस भी ...कुछ लोग स्वर्ग को तो तलाश लेते हैं मगर उसके द्वार की चाबी खो बैठते हैं ..मैंने स्त्री के मन में झांका और स्वर्ग की चाबी उसकी आँखों में कैद पाई,, मैंने कहा तुम मेरी <span class="text_exposed_show">आत्मा का दुसरा रूप हो क्या द्वार नहीं खोलोगी ..स्त्री ने झुक कर मेरी आँखों में देखा और कहा ..<br />
<span style="font-size: large;"><br />
कविता शब्द गढ़ती है<br />
खुरदरे भी नाजुक भी <br />
गीले गीले भाव से सने शब्द,<br />
थर थर कांपते शब्द,<br />
पीपल के पात जैसे<br />
झन झन करती कठोर हँसी<br />
ग्रास लिपटी जो<br />
शिराओं से होती हुई<br />
ह्रदय को थरथराती है ,<br />
क्यों गढ़ते हो शब्द<br />
मुझे गूंगी ही रहने दो,<br />
नहीं दे पाउंगी उत्तर<br />
सवाल पूछते शब्दों का<br />
तुम्हारे साथ गहरे उतर कर<br />
उस पोखर में<br />
जहां रात आती है पूछने<br />
चाँद क्यू नहीं निकला ,<br />
औरत को पाने के सौ बहाने करते शब्द<br />
गीले हो जाते है<br />
तुष्टीकरण की आगे,<br />
गूंगी हो जाती है भाषा<br />
फिसलते है शब्द<br />
सीने ने उठते है राग,<br />
डरती हूँ दृढ़ता से<br />
भावी स्वप्न स्नेह-प्रतीती शब्दों से<br />
कही उत्पन ना कर दे अबोध बैराग्य ,<br />
लीप दो मिट्टी हर चीज पर<br />
सुबह सुबह<br />
काले आकाश में खडीया से<br />
लिखाई की है मैंने<br />
शब्द आयेगे<br />
बताने उत्तर .......</span></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-16992605218120821052012-03-17T04:49:00.000-07:002012-03-17T04:49:02.346-07:00विष की लोह भस्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;">संगृहीत हैं रुग्नाव्यस्था <br />
विषाक्तता कुचित गति से <br />
आगे बढ़ती हैं <br />
हम विविध कल्पो में <br />
अमृत बाटते हैं <br />
कल्प सेवन करने से पहले <br />
<span class="text_exposed_show"> किसने घोला विष ,<br />
हे सूर्य पुत्र <br />
चिरकालीन पथ्य स्थिर और ह्रास हैं <br />
आओ ,<br />
साँसों की सौन्दर्योपचारो में दूषित<br />
अमृत को शुद्ध करे <br />
मन की दुर्लब वातव्याधि <br />
अभी भी जीर्ण हैं ,<br />
ढक दो ढक्कन<br />
इस आयुष्यवर्धक बर्तन का <br />
कुत्सित अव्यवस्था ने अमृत में <br />
लोह भस्म मिलाई हैं .................<span style="color: red; font-size: xx-small;">.रवि विद्रोही</span></span></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-203935413563614692012-03-14T07:50:00.000-07:002012-03-14T07:50:21.813-07:00. पहरेदार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;">.<br />
मार्क्स हर रात<br />
कब्र से बाहर निकलेंगा<br />
उठ खड़ा होगा कब्र के ऊपर<br />
और छू कर देखेंगा कब्र का हर पत्थर<br />
कहीं किसी मुल्ले पण्डे पादरी ने<br />
मिटा तो नहीं दिया<br />
कब्र के पत्थर पर से<br />
कार्ल मार्क्स का नाम......</span>......<i><b><span style="color: red; font-size: xx-small;">.....रवि विद्रोही </span></b></i></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-17693701880706633672012-03-14T03:09:00.002-07:002012-03-14T03:51:36.013-07:00मार्क्सवाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;">.<br />
असहनीय चिल्लाहट सुनकर<br />
मार्क्स कब्र के बाहर आया <br />
और बोला सोने दे मुझे <br />
हे निलज्ज इंसानों <br />
तुम्हारे बेतुके विमर्श ने <br />
मेरी कब्र के हर पत्थर को <br />
हिलाके रख दिया <br />
तुम्हारे खुरचने की आदत ने<br />
मिटा दिया हर पत्थर से <br />
मेरा नाम .......................</span>.........<span style="font-size: x-small;"><i><b><span style="color: red;">रवि विद्रोही </span></b></i></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-24543730084863442342012-03-13T18:43:00.002-07:002012-03-13T18:43:31.916-07:00आसमान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><br />
क़यामत की रात <br />
मेरी नहीं तुम्हारी हैं <br />
जिसे तुम रोशनी समझ रहे हो <br />
वो कफस की रोशनाई हैं <br />
फूल कोई भी हो<br />
कांटो पर ही अच्छा लगता हैं </span><br />
.</div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-73047790387643600652012-03-13T18:42:00.000-07:002012-03-13T18:42:43.847-07:00हकदार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><span style="font-size: xx-small;">.</span><br />
जब आसमान अंगड़ाई लेता हैं <br />
और बादलो का झाग उगलता हैं <br />
पृथ्वी आँखे फाड़कर <br />
आसमान को देखती हैं <br />
और कहती हैं <br />
मैंने तेरा बुरा कब चाहा <br />
हे निर्मोही आसमान </span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-60528998699259276332012-03-13T17:35:00.001-07:002012-03-13T17:36:40.745-07:00नारी की उत्कंठा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="commentBody" data-jsid="text"><span style="font-size: large;">उस रात<br />
चाँद नहीं निकला था<br />
आकाश अँधेरे से<br />
सरोबार था<br />
पुरुष ने स्त्री को देखा<br />
उसने उसकी देह की भाषा<br />
पढ़ ली थी,<br />
<br />
उसको बहलाया फुसलाया</span> <span style="font-size: large;"><br />
उसके कसीदे में गीत लिखे<br />
उस पर कविताएं लिखी<br />
उसको आजादी का अर्थ बताया<br />
तरक्की के गुण बताये<br />
आखेट पर निकलने का शौक रखने<br />
वाले की तरह<br />
जगह जगह जाल बिछाया<br />
नारी मुक्ति की बात कही<br />
सपनों के स्वपनिल संसार का<br />
झूठ बोला,<br />
<br />
स्त्री ने प्यार भरी आँखों से</span> <span style="font-size: large;"><br />
उसकी आँखों में झांका,<br />
तीतर की तरह पंख फड़फड़ाता<br />
पुरुष उसको<br />
निरीह सा लगा<br />
वह उसे देखकर मुस्कराई<br />
और सपनो के सुनहरे संसार में<br />
उड़ने लगी<br />
<br />
आकाश की उत्कंठा में</span> <span style="font-size: large;"><br />
लुका-छिपी का खेल देर-देर तक<br />
चलता रहा<br />
थके हुए क्षणों से<br />
जिस चीज पर नारी नीचे गिरी<br />
वह पुरुष का करीने से</span> <span style="font-size: large;"> बिछाया हुआ बिस्तर था.</span>.......................<wbr></wbr>..<i style="color: red; font-family: Georgia,"Times New Roman",serif;"><b>रवि विद्रोही ..</b></i></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-26583389177896272882012-03-11T18:59:00.001-07:002012-03-11T18:59:41.055-07:00सुखद सपने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="hasCaption" style="font-size: large;">अन्धो के इस शहर में <br />
मेरा शीशे का व्यापार है <br />
यहाँ धुंद की मृत्तिका अंधेरी है <br />
फिर भी आँखों में सुनहरे भविष्य की <br />
अकुलाहट का अधिकार है <br />
<span class="text_exposed_show"> झुलसी आशाओं की <br />
सफ़ेद अंधेरी रातो में <br />
एक नहीं ना जाने कितने <br />
खुदगर्ज चाँद आ रहे है <br />
मुझे मालूम है दर्पण के भाव ऊँचे है <br />
और अन्धो की सोच ज़िंदा है <br />
उनकी जाग्रत हंसी और सुरमे की सलाई <br />
दर्पण में नजर नहीं आती <br />
अंधी आँखों में आशाओं के सुखद सपने <br />
फिर भी उन्हें भा रहे <br />
और क्या कमाल है जनाब <br />
अन्धो के इस शहर में <br />
खोते जाइये और कहते रहिये<br />
कि पा रहे हैं...</span></span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-54644519514107484322012-03-10T22:47:00.003-08:002012-03-11T01:10:30.080-08:00वासना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;">.<br />
महाभारत पढी और जाना<br />
<br />
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे<br />
और दस रानियाँ<br />
जबकि वो अंधा था ,<br />
अंधे पुरुष की अंधी वासना ,<br />
<br />
पांडू के दो पत्नी थी <br />
और छ पुत्र <br />
जबकि वो नपुकसंक था <br />
नामर्द इंसान की छुपी हुई वासना <br />
<br />
श्री कृष्ण के <br />
सौलह हज्जार पत्नी थी <br />
और अनगिनित प्रेयेसी <br />
जबकि वो भगवान था <br />
मस्त भगवान की मस्त वासना </span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3831733945451344974.post-1248662728950071442012-03-09T12:13:00.002-08:002012-03-09T12:13:13.616-08:00कूहसार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">किस तार बाहर निकलू ,कूहसार तूफानों से <br />
आँधी ने फलक अपना, तारीक बनाया हैं ........रवि विद्रोही <br />
<br />
तार= तरिका <br />
कूहसार= पहाड़ <br />
फलक= आसमान <br />
<span class="text_exposed_show"> तारीक = घना अन्धेरा / काला <br />
<br />
इन पहाड़ जैसे विशाल तूफानों से मैं अपने आप को कैसे बचाऊ ...इस तूफानी बवंडर से कैसे बचू ..<br />
इस बुरी आंधी ने आसमान को भी बुरी तरह ढक लिया हैं ..आसमान पर चारो और घना काला अन्धेरा छा गया हैं ...जहां कुछ भी नजर नहीं आ रहा ...</span></div>अनुप्रयोज्यhttp://www.blogger.com/profile/03747395468747517052noreply@blogger.com0